हल्ला बोल

सफ़दर हाश्मी की मौत और ज़िंदगी

Author by : Sudhanva Deshpande

Translated by : Yogender Dutt

9788194357940

वाम प्रकाशन 2020

Language: Hindi

280 Pages

5.5 x 8.5 Inches

In Stock!

Price INR 325.0 Not Available

About the Book

‘मैं सफ़दर को बहुत चाहता था। वैसे, भला कौन उसे नहीं चाहता था? हम सभी उसकी दिलकश शख़्सियत, उसके सहज ठहाके, उसकी तमीज़ और तहज़ीब, सहज अभिव्यक्ति, स्पष्ट नज़रिए और कोमल मानवीय मूल्यों के क़ायल थे।’ – हबीब तनवीर


यह मौत की कहानी नहीं है। यह ज़िंदगी की कहानी है। एक सादालौह इंसान की दमकती, हसीन ज़िंदगी की कहानी, जितनी साधारण, उतनी ही असाधारण। सफ़दर हाश्मी की कहानी।


वह नया साल था। साल 1989 का पहला दिन। दिल्ली के एक बाहरी इलाक़े में नुक्कड़ नाटक के परफ़ॉर्मेंस के दौरान जन नाट्य मंच यानी जनम के समूह पर हमला किया गया। सफ़दर जनम के इस समूह का नेतृत्व कर रहा था। उस हमले ने जब उसकी जान ली तब वह सिर्फ़ 34 साल का था।


दिल दहना देने वाले उस हमले – जिसने सफ़दर को मार डाला – के चित्रण के साथ इस किताब की शुरुआत होती है और हमारा परिचय एक ऐसे इंसान से कराती है, जो कलाकार था, कॉमरेड था, कवि-लेखक, अभिनेता था और एक ऐसा इंसान था जिसे सभी चाहते थे, जो सबका प्यारा था। लेकिन यह किसी एक इंसान या किसी एक दुखद घटना पर लिखी गई किताब नहीं है। हल्ला बोल  यह बताती है और बेहद बारीक़ी से यह महसूस भी कराती है कि कैसे एक व्यक्ति की मौत और ज़िंदगी, तमाम दूसरे लोगों की कहानियों में गुंथी रहती है।


सफ़दर के बाद बड़ी हुई एक पूरी पीढ़ी के लिए हल्ला बोल  एक खज़ाना है। ऐसी कहानियों और ब्यौरों से भरा खज़ाना जो उस दिलचस्प आदमी के जुनून, हास्य, और इंसानियत को एक अंतरंग पोर्ट्रेट के तौर पर आपके सामने नुमायां करती है। सब मिलकर विचारधारा और ज़िंदगी के संघर्ष को आपस में जोड़ने वाली एक मज़बूत कड़ी को सामने लाती है। सफ़दर और उसके साथियों ने जो संघर्ष किए, वह वर्तमान भारतीय समाज को राह दिखाने वाली मशाल है।


जनम का नाटक हल्ला बोल  जो हमले के वक़्त झंडापुर में खेला जा रहा था, वह इस किताब में शामिल किया गया है।

Sudhanva Deshpande
Sudhanva Deshpande is a theatre director and theatre and film actor. He has been a member of Jana Natya Manch since 1987. He has co-directed two films on the theatre legend Habib Tanvir and his company Naya Theatre. He is the author of Halla Bol: The Death and Life of Safdar Hashmi (LeftWord 2020), editor of Theatre of the Streets: The Jana Natya Manch Experience (Janam 2007), and co-editor of Our Stage: Pleasures and Perils of Theatre Practice in India (Tulika 2008). He has held teaching positions at the National Institute of Design, Ahmedabad, and AJK Mass Communication Research Centre, Jamia Millia Islamia, New Delhi. Since 1998, he has been Managing Editor, LeftWord Books.

See more by Sudhanva Deshpande

You May Like