सर्पदंश और अन्य कविताएँ

Katyayani

9789383968428

Language: Hindi

344 Pages

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Price INR: 500.0 Not Available

About the Book

कात्यायनी की कविताओं का यह संकलन हमारे इस संगीन दौर के एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ की हैसियत रखता है। एक कवि के बतौर उन्होंने इसे बढ़ते हुए फ़ासीवाद के दौर से आंख मिलाई है और अपनी काव्य-मेधा और विवेक को अपने समय की गवाही देने और कविता में उसका मामला दर्ज करने में सर्फ़ किया है। जहां समाज आज हैं उसे वहां तक लाने में बुद्धिजीवियों और कलाकर्मियों की क्या भूमिका रही है इसपर उन्होंने नज़र रखी है। आज़ादी के बाद के भारत में मध्यवर्ग की दग़ा और ज़मीर फ़रोशी की दास्तान उनके यहां जगह जगह दर्ज है। कलात्मक और ज्ञानात्मक सृजन के किसी भी रूप में सबसे बड़ी ज़रूरत यह होती है कि चीज़ों को उनके सही नाम से पुकारा जाए। आज के समय यही काम सबसे मुश्किल दिखता है। कात्यायनी के पास चीज़ों को उनके सही सही नाम से पुकारने का साहस है। पर्दापोशी और लीपापोती उनके यहां नैतिक जुर्म हैं। यही चीज़ उन्हें इस दौर की विश्वसनीय कवि का और लगभग आधुनिक संत का दर्जा दिलाती है। वह हिंदी कविता में अपने दौर की प्रमुखतम नारीवादी आवाज़ हैं। युवा स्त्रियों को आज़ाद और निर्भीक आत्माभिव्यक्ति का रास्ता दिखाने और यह सिखाने में कि विद्रोह को कविता में कैसे लिखा जाता है उनकी बुनियादी भूमिका है। उनकी स्त्री मानव मुक्ति के हर संघर्ष के केन्द्र में हैं, न कि तमाशबीन की तरह परिधि पर। अलग अहाता बनाकर स्त्रीत्व के मध्यवर्गीय मिथक का आदर्शीकरण, महिमामंडन और प्रकारांतर से ब्राह्मणीकरण करने के प्रतिगामी उपक्रम की वह कठोर आलोचक हैं। इस संग्रह की बहुत सी कविताओं में इधर के वर्षों की सघन उदासी, विषाद, पिछले वक़्तों को लेकर अफ़सोस और नुक़सान के ब्यौरे हैं। ये उस जिए गए जीवन की गरिमा को ही रेखांकित करते हैं जिसमें वैचारिक और सामाजिक संघर्ष सर्वोपरि मानव मूल्य हैं।

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