सावित्रीबाई फुले

देश की पहली अध्यापिका का जीवन संघर्ष

Kanak Lata

978-93-92017-67-4

Language: Hindi

145 Pages

In Stock!

Price INR 225.0 USD 16.0

About the Book

भारत में वंचित तबक़े के लिए औपचारिक स्कूली शिक्षा की शुरुआत फुले दंपति (सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले) ने की थी। उन्होंने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों के बीच पहले ख़ुद शिक्षा अर्जित की और उसके बाद एक ऐसा शिक्षा अभियान शुरू किया जिसमें उत्पीड़ित जातियों के अलावा सभी समुदायों के बच्चे, युवा, प्रौढ़, स्त्रियां, किसान और मज़दूर शामिल हो गए।


यह किताब उस भयावह दौर का एक चित्र खींचती है जब किसी स्त्री के लिए शिक्षा पाना असंभव था। लेकिन सावित्रीबाई ने तमाम विघ्न-बाधाओं से लड़ते हुए न केवल स्वयं शिक्षा हासिल की बल्कि अध्यापिका बनकर इसकी रोशनी समाज में भी फैलाई। यह किताब उनके क़दम-दर-क़दम आगे बढ़ने की कहानी कहती है।


सावित्रीबाई अच्छी तरह समझती थीं कि शिक्षा का प्रसार तभी संभव है जब समाज में व्यापक रूप से जागरूकता आए। इस किताब में समाज सुधार की उनकी कोशिशों की विस्तार से चर्चा की गई है। अध्यापिका, समाजसेविका के अलावा वह एक लेखिका भी थीं। इसमें उनके लेखन की विशिष्टताओं पर भी प्रकाश डाला गया है।

Kanak Lata
कनक लता सामाजिक-राजनीतिक और शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर लिखते हुए वंचित समाज से जुड़े प्रश्नों को लगातार उठाती रही हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की है और कुछ समय तक कॉलेजों में अध्यापन किया है। अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन में बतौर ‘शिक्षक प्रशिक्षक’ उत्तराखंड के कई इलाक़ों में उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भागीदारी की है | वह स्त्रियों से संबंधित मुद्दे पर लेख के लिए लक्ष्मी देवी अवार्ड से सम्मानित हैं।

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