वारली आदिवासी विद्रोह

लड़ाई जारी है

Archana Prasad

Translated by : Thakur Das

9788194357933

Language: Hindi

164 Pages

5.5 x 8.5 Inches

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Price INR: 195.0 Not Available

Book Club Price INR 78.0

About the Book

सन् 1945 में महाराष्ट्र के ठाणे में एक बड़े विद्रोह की शुरुआत हुई। यह था – वारली आदिवासी विद्रोह। यह देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे उन किसान आंदोलनों का बेहद ज़रूरी हिस्सा था, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और हिन्स्दुतान की आजादी से पहले शुरू हुए थे। इन सभी किसान आंदोलनों का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान सभा द्वारा किया जा रहा था। इन आंदोलनों ने सामंतवाद और ज़मीदारी प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की। इन आंदोलनों ने किसान सभा के संस्थागत ढाचे को तो मजबूत किया ही, वामपंथ के राजनीतिक प्रभाव को भी असरदार बनाया।


किसान सभा के तात्कालिक दिग्गज नेताओं और कार्यकर्ताओं के मौखिक साक्षात्कार को आधार बनाकर लिखी गई यह किताब ठाणे के दो तालुकों – तलासरी और डहाणू (अब पालघर ज़िला) – के वारली आदिवासियों की गरिमा और संघर्ष का इतिहास बताती है। ये साक्षात्कार कोई सामान्य साक्षात्कार नही हैं बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं, जो बताते हैं कि आदिवासियों के साथ राज्य जैसी शोषक संस्था की यह लड़ाई कोई नई नही है।1945-52 के विद्रोह के साथ शुरू हुई यह लड़ाई अब भी जारी है।


यह किताब उन वारली आदिवासियों की आवाज़ है, जिनके संघर्षों को और जिनके इतिहास को मुख्यधारा के अकादमिक जगत ने पूरी तरह ख़ारिज कर दिया। लगभग चार साल के शोध के बाद तैयार हुई यह पुस्तक कुछ ऐसे ज़रूरी संघर्षों और विद्रोहों को रेखांकित करती है जिसने वर्ग आधारित आदिवासी नेतृत्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Archana Prasad
Archana Prasad is Professor at the Centre for Informal Sector and Labour Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi. She is the author of Against Ecological Romanticism: Verrier Elwin and the Making of an Anti-Modern Tribal Identity (2011), and Environmentalism and the Left: Contemporary Debates and Future Agendas (LeftWord, 2004).

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Thakur Das
Thakur Das is an activist and translator. He was associated for many years with Progressive Printers, Shahdara.

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