नया राजा नये क़िस्से

Author by : अनूप मणि त्रिपाठी

9789392017919

Vaam Prakashan 2024

Language: Hindi

148 Pages

5.5 X 8.5 Inches

In Stock!

Price INR 225.0 Not Available

About the Book

‘तो ऐसा करो! राजधानी के सभी गधों को पकड़ कर ज़िलाबदर कर दो!’ राजा ने अपना दूसरा और फाइनल आदेश सुना दिया।

पूरी राजधानी में ची पों ची पों होने लगी।

जब कर्मचारी गधे पकड़ रहे थे, तो वहीं पर दो बूढ़े खड़े हो कर सारा तमाशा देख रहे थे।

‘क्या कहते हो! राजधानी में अब गधे नहीं बचेंगे क्या!’ एक बूढ़े ने राज्य कर्मचारियों को सुनाते हुए दू सरे बूढ़े से पूछा।

‘हम एक भी न छोड़ेंगे चच्चा!’ एक युवा राज्य कर्मचारी पूरे जोश में बोला।

‘न बेटा! एक को तो छोड़ना ही पड़ेगा!’

राजतंत्र की विदाई हो गयी पर राजा विदा नहीं हुआ।

वह लोकतंत्र में भी चला आया, नये रूप-रंग के साथ। अब वह नये नाम से पुकारा जाता है, नये तरीक़े से चुना जाता है। राजशाही की तरह उसकी राजगद्दी हर हाल में सुरक्षित नहीं रहती इसलिए इसे बचाए रखने के लिए वह तरह-तरह की कवायदें करता रहता है। वह पुराने राजाओं की तरह अहंकारी और क्रूर है, लेकिन ख़ुशहाली और विकास का ढिंढोरा पीटता रहता है। अब राजा होगा तो दरबारी भी होंगे ही। नये राजा के नये चाटुकार आ गये हैं जिनकी चापलूसी से राजदरबार चमक रहा है।

ये हमारी व्यवस्था के क्षरण की कहानियां हैं जो बताती हैं कि जनतंत्र के सारे स्तंभ किस तरह राजा के भोंपू में बदल गये हैं। ये किस्से हमें गुदगुदाते हैं और हमारे समय के विद्रूप को उजागर करते हैं।

अनूप मणि त्रिपाठी
अनूप मणि त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के महाराजगंज ज़िले के धानी नामक गांव में हुआ। अब तक दो व्यंग्य संग्रह शोरूम में जननायक और अस मानुष की जात प्रकाशित। तहलका पत्रिका में ‘तहलका फुल्का’ नामक व्यंग्य स्तंभ बेहद चर्चित रहा। उन्हें अंजमुन नवलेखन पुरस्कार, प्रथम के पी सक्सेना युवा सम्मान, हरिशंकर परसाई स्मृति इप्टा व्यंग्य सम्मान और सफ़दर हाश्मी शब्द शिल्पी सम्मान प्राप्त हुए हैं। कुछ व्यंग्य रचनाओं पर नुक्कड़ नाटक खेले गये। एक कहानी पर टेली फिल्म का निर्माण। मासिक पत्रिका जनचुनौती में ‘दरबार’ नाम से व्यंग्य स्तंभ जारी। फिलहाल स्वतंत्र लेखन।

See more by अनूप मणि त्रिपाठी

You May Like