RSS

Kaya Aur Maya

Devanura Mahadeva

Translated by : Swati Krishna

9788199312289

Language: Hindi

108 Pages

In Stock!

Price INR: 199.0 Not Available

About the Book

अब सौ साल का हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दरअसल है क्या? इसकी काया के पीछे छुपी माया क्या है? अब जबकि संघ से जुड़ी एक पार्टी सत्ता पर मज़बूती से क़ाबिज़ है, यह भारत को किस दिशा में ले जा रहा है?


ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके ग़ौरतलब जवाब देवनूर महादेव ने आर.एस.एस. : काया और माया में दिए हैं। मिथकों को आधुनिकता के और लोकवार्ताओं को गहरी राजनीतिक अन्तर्दृष्टि के बरअक्स रखकर देखने-परखने से हासिल इन जवाबों को पेश करते हुए, अपने ख़ास अन्दाज़ में वे पाठकों से आग्रह करते हैं : जब आर.एस.एस. का मायावी दानव भेष बदलकर हमारे दरवाज़े पर आता है, तब हमें उसकी बातों में नहीं आना चाहिए। ‘आज नक़द कल उधार’ की तर्ज़ पर हमें भी ग्रामवासियों की तरह अपने दरवाज़ों पर ‘नाले बा’ (कल आना) लिख देना चाहिए!


कन्नड़ सहित अनेक भाषाओं में बिक्री के कीर्तिमान बना चुकी यह असाधारण किताब सांस्कृतिक आलोचना और ऐतिहासिक व्याख्या के साथ-साथ राजनीतिक कार्रवाई का आह्वान भी है।


‘आर.एस.एस. : काया और माया’ देवनूर महादेव की दशकों के अध्ययन और अनुभव का निचोड़ है। उन्होंने हिन्दुत्व के सबसे प्रभावशाली विचारकों की पुस्तकों को सावधानीपूर्वक पढ़ा है और कर्नाटक में संघ- परिवार की गतिविधियों को अपनी आँखों देखा है।  


—रामचंद्र गुहा  


यह किताब हमारी ज़िन्दगियों पर आर.एस.एस. के कसते शिकंजे की कड़वी दास्तान है। यह एक फ़रियाद और एक चेतावनी है। यह अपनी शक्ति–अपनी सचाई–देवनूर महादेव के नज़रिये की स्पष्टता से, और उनकी सीधी-सादी सरल भाषा की पारदर्शिता से हासिल करती है, जैसे, ‘कट्टरता कहीं भी हो, वह मानवता को निगल जाती है’।  


हमें उनकी सलाह पर ग़ौर करते हुए पूरी तरह सतर्क रहना चाहिए। कम-से-कम फ़िलहाल। ऐसा न हो कि उनकी बात वीराने की चीख़ होकर रह जाए।


—गीतांजलि श्री  


नफरत की राजनीति की जड़ पर वार करने वाला अहम प्रयास।  


—चन्दन गौड़ा


देवनूर महादेव ने रचनात्मक राजनीतिक लेखन को सत्य की खोज के मार्ग के रूप में अपनाया है। वे घृणा की राजनीति का मुकाबला करने के लिए... लोगों से उनकी भाषा, उनके रूपकों और उनकी सांस्कृतिक स्मृतियों के जरिये बात करते हैं।


—योगेन्द्र यादव


देवनूर महादेव हमारे देश के प्रमुख समकालीन जन-बौद्धिक और चिन्तक हैं।  


—विवेक शानबाग

Devanura Mahadeva

देवनूर महादेव कन्नड़-साहित्य के सुपरिचित हस्ताक्षर और जन-बुद्धिजीवी हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नारा, ‘हिन्दू ओवंदु’ अर्थात सभी हिन्दू एक हैं, में समता की ध्वनि सुनकर उसकी ओर आकर्षित हुए। लेकिन कुछ ही वर्षों में, संघ की कथनी और करनी का अन्तर, जातीय पूर्वाग्रह और मुस्लिम-विरोधी दुराग्रह समझने के बाद उससे अलग हो गए। इसके बाद राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आन्दोलन से जुड़े। जब आपातकाल घोषित हुआ तब उसका सक्रिय प्रतिवाद किया। वे 1977 में स्थापित कर्नाटक के दलित आन्दोलन की अगुआ दलित संघर्ष समिति के सह-संस्थापक हैं। उन्होंने 2005 में सर्वोदय कर्नाटक पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसका मकसद देश में किसान और दलित आन्दोलनों को एक साथ लाना था।


उन्होंने अधिक नहीं लिखा है, जो जितना लिखा है उसने कन्नड़-समाज और उसके बाहर बौद्धिक जगत में हलचल पैदा की है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘द् यावानूरू’ (कहानी-संग्रह); ‘कुसुमबाले’, ‘वडलाळ’ (लघु उपन्यास); ‘येदेगे बिद्दा अक्षरा’, ‘आरएसएस : आळ मत्तू अगाला’ (कथेतर/वैचारिक)।


उनके लेखन की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ‘आरएसएस : आळ मत्तू अगला’ की कन्नड़ और तेलुगु में एक लाख से ज़्यादा प्रतियाँ और पाँच अन्य भाषाओं में दसियों हज़ार प्रतियाँ बिक चुकी हैं।


उन्हें ‘कुसुमबाले’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्रदान किया गया और भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया। देश में बढ़ती असहिष्णुता का विरोध करते हुए उन्होंने 2015 में यह पुरस्कार और उपाधि वापस लौटा दी।

See more by Devanura Mahadeva

You May Like