Edited by : Sanjeev Kumar, Pranjal, Shipra Kiran
Introduction by : Nandita Haksar
9788194077893
वाम प्रकाशन 2019
Language: Hindi
94 Pages
5.5 x 8.5 Inches
Price INR 100.0 Not Available
जब तक आवाज़ बची है, तब तक उम्मीद बची है। इस श्रृंखला की अलग-अलग कड़ियों में आप अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों पर लेखकों-कलाकारों-कार्यकर्ताओं की बेबाक टिप्पणियाँ पढ़ेंगे।
हाल ही में भारतीय संसद ने देश के संघीय ढाँचे और लोकतांत्रिक चरित्र की जड़ों को हमेशा के लिए कमज़ोर कर देने वाला एक फ़ैसला किया।एक ग़ैर-संवैधानिक प्रक्रिया से निकले हुए इस फ़ैसले के तहत न सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छिन गया बल्कि वह उस न्यूनतम स्वायत्तता से भी महरूम हो गया जो अन्य राज्यों को मिली हुई है।इस फ़ैसले को थोपने के लिए पूरे राज्य की संचार-व्यवस्था ठप्प कर दी गई, कश्मीर को एक विराट जेलखाने में तब्दील कर दिया गया। आज कश्मीर में इतनी बड़ी संख्या में सेना और अर्द्ध-सैनिक बलों की तैनाती है जितनी दुनिया के किसी कोने में नहीं है।यह पुस्तिका इसी शर्मनाक और दहशतनाक ऐतिहासिक लम्हे के मुख़्तलिफ़पहलुओं की पड़ताल है।
लेखक : नंदिता हक्सर | यूसुफ़ तारीगामी | एजाज़ अशरफ़ | प्रदीप मैगज़ीन |
एलोरा पुरी | वजाहत हबीबुल्लाह | रश्मि सहगल | प्रभात पटनायक |
सुबोध वर्मा | शिंजनी जैन | सुभाष गाताडे | हुमरा क़ुरैशी | डेविड देवदास