अमीरों का मसीहा कोई नहीं

Author by : विष्णु नागर

9789392017193

Vaam Prakashan 2024

Language: Hindi

130 Pages

5.5 x 8.5 Inches

In Stock!

Price INR 200.0 Not Available

About the Book

“साहबान, मेरी रीढ़ की हड्डी गुम है। किसी को मिले तो बता देना। वैसे न मिले तो भी परेशान मत होना, मेरा काम इसके न होने पर दनादन चल रहा है। आपकी भी खो गई हो तो चिंता मत करना। मुझे लग रहा है कि यह एपेंडिक्स की तरह है। समस्या हो तो ऑपरेशन से निकलवा दो। इसके न होने से बहुत आनंद में हूं। परमानंदावस्था में

हूं!”

 ये व्यंग्य रचनाएं आज के भयावह यथार्थ को अपने तरीक़े से उजागर करती हैं। ये ऐसे समय लिखी गयी हैं, जब तर्कशीलता और विवेक-बुद्धि पर सबसे ज़्यादा हमले हो रहे हैं और अंधश्रद्धा व पाखंड को एक अभियान के तहत स्थापित किया जा रहा है। इस मुहिम के झंडाबरदारों के असली चेहरों को संग्रह की रचनाएं बख़ूबी सामने लाती हैं।

 इसके लिए लेखक हमें कु छ काल्पनिक चरित्रों की एक नाटकीय दुनिया में ले चलता है। इस अवास्तविक दुनिया से गुज़रते हुए हमें उसका हरेक चरित्र एकदम वास्तविक और

जाना-पहचाना लगता है। हम एक नयी रोशनी में अपने नीति-नियंताओं को देखते हैं और समझ पाते हैं कि उन्होंने अपने को कितने आवरणों में छुपाया हुआ है। हमारा साक्षात्कार उस तंत्र से होता है जो हमेशा से रूप बदल-बदलकर साधारण और कमज़ोर नागरिकों को प्रताड़ित करता रहा है। लेखक ने संकेत किया है कि हाशिये के आदमी के उत्पीड़न के न जाने कितने बहाने ढूंढ लिए गये हैं। इस तरह ये आम नागरिकों की करुण व्यथा की कहानियां भी हैं।

विष्णु नागर
विष्णु नागर जाने-माने कवि, कथाकार और व्यंग्यकार हैं। मैं फिर कहता हूँ चिड़िया, तालाब में डूबी छह लड़कियाँ और संसार बदल जाएगा इनके प्रमुख कविता संग्रह हैं जबकि ईश्वर की कहानियाँ, आख्यान, रात-दिन, बच्चा और गेंद इनके प्रमुख कहानी संग्रह। व्यंग्य के कई संग्रह हैं जिनमें प्रमुख हैं: जीव-जंतु पुराण, घोड़ा और घास, राष्ट्रीय नाक, छोटा सा ब्रेक तथा सदी का सबसे बड़ा ड्रामेबाज। नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, कादंबिनी, नई दुनिया में लंबे समय तक प्रमुख पदों पर कार्य करने के बाद फिलहाल स्वतंत्र लेखन।

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