कबहूं ना छाड़े खेत

दिल्ली के दरवाज़े पर किसान की दस्तक

Edited by : Pranjal

9788195031092

Language: Hindi

108 Pages

5.5 x 8.5 Inches

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Price INR: 95.0 Not Available

Book Club Price INR 38.0

About the Book

आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि लाखों के हुजूम ने राजधानी को चारों तरफ़ से घेरा और एक स्वर में सरकार से गुहार की। 2020-21 का किसान आंदोलन इतिहास में दर्ज रहेगा। दिल्ली की कड़ाके की ठंड और बारिश में भी किसानों के हौसले बुलंद रहे।


शांतिप्रिय ढंग से देश के अन्नदाताओं ने मोदी सरकार के सामने पहाड़ जैसी चुनौती खड़ी करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें कॉर्पोरेट की ग़ुलामी मंज़ूर नहीं है। यह लड़ाई खेती ही नहीं बल्कि देश के स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता को बचाने की लड़ाई है।


यह किताब इन्हीं संघर्षों की आवाज़ों का संकलन है। क्यों इन क़ानूनों को लागू किया गया? क्यों यह कदम देश के किसान और उन पर निर्भर अनेकों को बदहाली की तरफ धकेलेगा? क्यों इन क़ानूनों का असर सिर्फ़ किसानों तक सीमित नहीं है? इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढ रही है यह किताब।


लेखक: इरशाद खान सिकंदर, हन्नान मोल्ला, सुबोध वर्मा, प्रभात पटनायक, तेजल कानितकर, जूही चटर्जी, एम श्रीधर आचार्युलु, तारिक अनवर, रवि कौशल, नाज़मा खान, रौनक छाबड़ा, मुकुंद झा, भाषा सिंह, अमनदीप संधू, विक्रम सिंह, लेज़ली ज़ेवियर, पी. साईनाथ

Pranjal
Pranjal is a journalist and activist. He has been associated with the student movement for a long time.

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