Devanura Mahadeva

देवनूर महादेव कन्नड़-साहित्य के सुपरिचित हस्ताक्षर और जन-बुद्धिजीवी हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नारा, ‘हिन्दू ओवंदु’ अर्थात सभी हिन्दू एक हैं, में समता की ध्वनि सुनकर उसकी ओर आकर्षित हुए। लेकिन कुछ ही वर्षों में, संघ की कथनी और करनी का अन्तर, जातीय पूर्वाग्रह और मुस्लिम-विरोधी दुराग्रह समझने के बाद उससे अलग हो गए। इसके बाद राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आन्दोलन से जुड़े। जब आपातकाल घोषित हुआ तब उसका सक्रिय प्रतिवाद किया। वे 1977 में स्थापित कर्नाटक के दलित आन्दोलन की अगुआ दलित संघर्ष समिति के सह-संस्थापक हैं। उन्होंने 2005 में सर्वोदय कर्नाटक पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसका मकसद देश में किसान और दलित आन्दोलनों को एक साथ लाना था।


उन्होंने अधिक नहीं लिखा है, जो जितना लिखा है उसने कन्नड़-समाज और उसके बाहर बौद्धिक जगत में हलचल पैदा की है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘द् यावानूरू’ (कहानी-संग्रह); ‘कुसुमबाले’, ‘वडलाळ’ (लघु उपन्यास); ‘येदेगे बिद्दा अक्षरा’, ‘आरएसएस : आळ मत्तू अगाला’ (कथेतर/वैचारिक)।


उनके लेखन की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ‘आरएसएस : आळ मत्तू अगला’ की कन्नड़ और तेलुगु में एक लाख से ज़्यादा प्रतियाँ और पाँच अन्य भाषाओं में दसियों हज़ार प्रतियाँ बिक चुकी हैं।


उन्हें ‘कुसुमबाले’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्रदान किया गया और भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया। देश में बढ़ती असहिष्णुता का विरोध करते हुए उन्होंने 2015 में यह पुरस्कार और उपाधि वापस लौटा दी।

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